AMAN AJ

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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-30

    

    अध्याय-10
    साजिश का पर्दाफाश
    भाग-2

    ★★★
    
    चारों ही उस छोटे से दरवाजे को पार कर दूसरी ओर आ गए। दूसरी ओर आते ही उन्होंने देखा यहां का माहौल काफी भयंकर है। अजीब से काले रंग का धुआं पूरी जगह पर था। यह पूरी जगह एक बड़े हाॅल के रूप में थी, जहां सामने बड़ी सी दीवार बनी हुई थी। 
    
    सभी ने ध्यान से देखा तो पता चला दीवार के सामने सफेद चोगे वाले एक शख्स ने अपने दोनों ही हाथ फैला रखे हैं। एक हाथ में काली छड़ थी जिससे वह अजीब सा काला धुआं निकल रहा था जो यहां हर तरफ दिख रहा था। 
    
    आचार्य ज्ञरक ने आगे चलने की कोशिश की। मगर जैसे ही वह थोड़ा सा आगे चले काले धुएं की वजह से उन्हें झटका लगा, इस वजह से उन्हें वापिस पीछे होना पड़ा।
    
    पीछे होते हुए उन्होंने अपने लाल और सफेद रोशनी वाली छड़ कों ऊपर किया और कुछ मंत्र बुदबुदाए। ऐसा करते ही उनकी छड़ से सफेद रंग का धुआं निकलने लगा जो घुमावदार रूप लेते हुए काले धुएं को खत्म करने लगा। 
    
    देखते ही देखते पूरे हॉल का काला धुआं सफेद धुए के द्वारा खत्म हो गया। आखिर में सब को खत्म करने के बाद सफेद धुआं वापस आचार्य ज्ञरक की छड़ में चला गया। अब हॉल में या तो वह चारों दिख रहे थे या फिर सामने खड़ा शख्स। ‌ जिसके हाथ अभी भी दीवार की ओर थे।
    
    अचार्य ज्ञरक आगे बढ़े और तेज और सख्त आवाज में बोले “कौन हो तुम, पीछे मुड़कर हमें अपना चेहरा दिखाओ”
    
    सामने वाले शख्स ने जो सफेद कपड़ा पहन रखा था उसकी वजह से उसके शरीर का कोई भी हिस्सा दिखाई नहीं दे रहा था। यहां तक कि सर के बाल भी सफेद कपड़े वाले चोगे में ढके हुए थे। आचार्य ज्ञरक के कहने के बाद सामने के शख्स ने अपनी होने वाली क्रिया को रोका और दोनों हाथ नीचे कर लिए।
    
    दोनों हाथों को नीचे करने के बाद वह धीरे-धीरे पीछे की ओर मुड़े। उनके पीछे मुड़ते ही उनके चेहरे की ठोडी और उस पर बनी सफेद दाढ़ी दिखाई दी। अभी भी इसके अलावा उनका बाकी का हिस्सा नहीं दिख रहा था।
    
    आर्य ने सिर्फ इतनी से हिस्से को देखते हुए कहा “उनकी दाढ़ी देखकर तो यही पता लगता है कि यही भी आश्रम के आचार्य हैं। मगर कौन...”
    
    आचार्य ज्ञरक यह सुनकर बोले “अभी पता चल जाएगा।” इतना कहने के बाद उन्होंने अपनी आंखें बंद की और वापस कुछ मंत्र पढ़े। इतना करके उन्होंने अपने हाथ वाली छड़ सामने कर दी। इससे हवा की तेज लहर पैदा हुई जिससे सामने वाले शख्स के कपड़े पीछे की ओर लहराने लगे। इसी दौरान उनके चेहरे को ढकने वाला कपड़ा पीछे हट गया। और कपड़ा हटने के बाद जब उनका चेहरा सामने आया तो सब हैरान हो गए। सबके मुंह खुले के खुले और आंखें फटी की फटी रह गई। हर किसी के पैरों के तले से जमीन खिसकने वाले हालात हो गए थे। 
    
    आयुध के मुंह से टूटे हुए स्वर में निकला “आचार्य वर्धन। ‌ यह तो आश्रम के सबसे बड़े अचार्य, आचार्य वर्धन है।”
    
    हिना ने भी हैरान होते हुए कहा “यानी कि जो हमारे आश्रम में गद्दारी कर रहा है वह और कोई नहीं बल्कि आश्रम के सबसे ताकतवर अचार्य, आचार्य वर्धन ही है। आचार्य वर्धन ही आश्रम से गद्दारी करके दीवार के पीछे की आत्माओं को आजाद करवाना चाहते हैं। आचार्य वर्धन ने ही गुफा से काली छड़ चुराई। या मैं कहूं कि काली छड़ लेकर यहां अंधेरी परछाइयों को आजाद करवाने की कोशिश की।”
    
    आर्य भी इस मौके पर खुद को बोलने से नहीं रोक सका “मेरे लिए तो इस बात पर यकीन करना भी मुश्किल हो रहा है कि आचार्य वर्धन इन सब के पीछे हैं। अगर आश्रम का कोई भी और दूसरा अचार्य होता तो शायद मैं यह बात मान भी लेता, मगर अचार्य वर्धन असली गुनाहगार होंगे यह मानना मुश्किल है। हमारे आश्रम के मुख्य और ताकतवर आचार्य ही भला यह कैसे कर सकते है।”
    
    आचार्य ज्ञरक ने आर्य की बात पर कहा “मुझे भी इन सभी सवालों के जवाब जानने हैं। मुझे भी पता करना है कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया। आखिर ऐसे क्या कारण थे जो उन्हें ऐसा करना पड़ा...? आखिर कौन सी वजह ने उन्हें यह सब करने के लिए मजबूर कर दिया?”
    
    हिना दो कदम आगे बढ़ी और अचार्य वर्धन से बोली “बताइए अचार्य वर्धन। आपने ऐसा क्यों किया। आखिर ऐसी क्या वजह रही जो आपको यह सब करना पड़ा।”
    
    सामने अचार्य वर्धन खामोश थे। मगर उनका चेहरा सामने के चारों चेहरों को देख रहा था। वह बोले “मुझे नहीं लगता मुझे आप सब को जवाब देने की जरूरत है। मेरी इस काम को लेकर किसी भी तरह की जवाबदेही नहीं बनती। मैं यहां आश्रम में जो चाहे वह कर सकता हूं। यह पूरा आश्रम मेरी जिम्मेदारी है और इस पर मेरा पूरा अधिकार है। मैं जो चाहूं इसके लिए वो कर सकता हूं।” 
    
    “यह आप कैसी बातें कर रहे हैं अचार्य वर्धन..।” आचार्य ज्ञरक ने कहा “और आप ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं। हां आप जो चाहे वह कर सकते हैं मगर बुरा ...यह सरासर गलत है। ‌ मैंने कभी नहीं सोचा था कि आप आश्रम के बारे में इतना बुरा सोचेंगे। यहां आश्रम में कम उम्र के 400 बच्चे हैं। ऐसे बच्चे जो अपने मां-बाप को भी खो चुके हैं। सब मिलकर अंधेरे से लड़ाई के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। फिर बाकी के आचार्य और गुरु जो मिलकर खुद को अंधेरे से लड़ाई के लिए तैयार रखते हैं। आप उनके लिए कैसे एक बुरी चीज सोच सकते हैं।”
    
    अचार्य वर्धन ने अपने दाई और देखा। दाई ओर देखते हुए वह बोले “आप आखिर किस लड़ाई की बात कर रहे हैं। उस लड़ाई की जो हम कभी जीत ही नहीं सकते। उस लड़ाई की जिसमें मुट्ठी भर लोग ब्रह्मांड की सबसे बड़ी ताकतों से लड़ने वाले हैं। एक ऐसी बड़ी ताकत से जिसका सामना हममें से कोई नहीं कर सकता। आप उस लड़ाई की बात कर रहे हैं जिसकी अगर सभी संभावनाएं भी निकाल ली जाए तब भी हमारे जीत की गुंजाइश नहीं। ऐसी लड़ाई से यही बेहतर है कि हम इस लड़ाई को पूरी तरह से छोड़ दें।‌ हम भूल जाएं हमारी कोई लड़ाई भी है।”
    
    “आप आखिर कहना क्या चाहते हैं?” आचार्य ज्ञरक ने पुछा “आखिर आपके इरादे क्या है और आप करना क्या चाहते हैं?”
    
    “इस लड़ाई को हमेशा हमेशा के लिए खत्म करना चाहता हूं।” आचार्य वर्धन स्पष्ट शब्दों में बोले “जिसके लिए मैंने कुछ अंधेरी परछाइयों से बात की है। वह अंधेरी परछाइयां अंधेरे के शहंशाह तक पहुंच रखती है। जिसमें यह बात कही गई है कि अगर हम अब तक की कैद की गई सभी अंधेरी परछाइयों को छोड़ देते हैं और इन दोनों ही छड़ों को उनके हवाले कर देते हैं तो वह इस लड़ाई को भूल जाएंगे। उनकी हमसे दुश्मनी खत्म हो जाएगी वह भी हमेशा हमेशा के लिए। अंधेरे और आश्रम के लोगों के बीच कोई भी लड़ाई नहीं रहेगी।”
    
    “मगर इससे तो शैतान इस दुनिया में आ जाएगा।” आर्य बोला “ और अगर शैतान इस दुनिया पर आ गया तो दुनिया का क्या होगा। दुनिया के हर एक देश, हर एक शहर, हरेक राज्य पर शैतान का कब्जा हो जाएगा। हर जगह सिर्फ और सिर्फ अंधेरी परछाइयों का राज होगा।”
    
    “हां तो क्या?” आचार्य वर्धन बोले “हमारा आखिर इस दुनिया से मतलब ही क्या है। हम क्यों इस दुनिया को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। ना तो हम इस दुनिया से कुछ लेते हैं ना ही इसे कुछ देते हैं। फिर इस दुनिया और शैतान के मकसद के बीच हम क्यों रोड़ा बन कर खड़े हैं। आखिर हमारा उद्देश्य ही क्या है? जब हमारा इस दुनिया में दुनिया को बचाने से लेकर किसी तरह का स्वार्थ ही नहीं तो हम क्यों हमारे आश्रम के लोगों की बलि दे। मैं क्यों अपने आश्रम के लोगों को खोऊं।” आचार्य वर्धन की आंखों से आंसू निकलने लगे। “मैंने अब तक अपने हजारों लोगों को मरते हुए देखा है। यहां इस आश्रम में। इस आश्रम की सीमा में। सिर्फ यही नहीं बल्कि बाहर की दुनिया में भी। खुद अचार्य ज्ञरक यह कह चुके हैं कि यहां 400 विद्यार्थी हैं, जिनमें से किसी के भी मां-बाप जिंदा नहीं। मैं इतने सारे लोगों का बलिदान देख चुका हूं वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि हम किसी के मकसद के बीच का रोड़ा है। मैं अपने ओर लोगों को इस तरह से मरता हुआ नहीं देख सकता। सभी को खोते खोते अब हमारी खुद की संख्या भी हजार के करीब नहीं बची है। मुट्ठी भर लोग ही बचे हैं और उन्हें बचाने की पूरी जिम्मेदारी मेरी है। मैं अब उनके लिए किसी तरह का खतरा नहीं मोल लेना चाहता।” इसके बाद उन्होंने चारों से सवाल पूछते हुए कहा “बताओ क्या इस मामले में मैं गलत हूं? क्या मेरा फर्ज नहीं कि मैं अपने लोगों की जान बचाऊं? क्या मेरा फर्ज नहीं कि मैं अपने मुट्ठी भर लोगों को कुछ भी ना होने दुं?”
    
    आचार्य ज्ञरक थोड़े शांत स्वर में बोले “ हां, मैं मानता हूं कि आप अपनी जगह बिल्कुल सही है। आश्रम की जितनी भी कम संख्या बची है उन्हें बचाने की जिम्मेदारी आपकी है। और आपको इसके लिए वह सब करना चाहिए जो आप कर सकते हैं। मगर मुझे नहीं लगता आप ने जो रास्ता चुना है वह किसी भी मायने में सही है। आपके इस रास्ते में मुट्ठी भर लोगों की जान के बदले अरबों लोगों की जान जाने वाली है। हम अपने आश्रम के लिए अरबों लोगों की जान को भी दांव पर नहीं लगा सकते। आपको इस बात को भी समझना होगा। अरबों लोगों की जान काफी ज्यादा होती है।”
    
    आचार्य वर्धन ने उनकी इस बात का जवाब दिया। “अरबों लोगों की जान तो वैसे भी जाने वाली है। आज नहीं तो कल।‌आप यह बात जानते हैं कि हम शैतान को कभी नहीं रोक सकते। जो सुरक्षा चक्कर हमें बचा कर रखता है वह भी कभी ना कभी इस आश्रम से हट जाएगा। कमजोर तो यह होने ही लगा है, और हम अब बड़ी मुश्किल से शक्ति मंत्र का इस्तेमाल करे इसे ताकतवर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। मगर ऐसा हमेशा नहीं होता रहेगा। ऐसे में जब यह सुरक्षा चक्र खत्म होगा तब बाहर घुमती अंधेरी परछाइयां हम पर हमला कर देगी। हमारी संख्या कम होगी तो हम उनसे जीत नहीं पाएंगे। इसके बाद वह हमें मारेंगे, इस दिवार के पीछे केद आत्माओं को आजाद करेंगे, दोनों ही छड़ीयों पर अपना कब्जा करेंगे, और शैतान को यहां इस दुनिया पर ले आएंगे। तब भी अरबों लोगों की जान नहीं बचने वाली। वह तब भी मरेंगे। मगर बस फर्क इतना होगा कि तब हम लोग जिंदा नहीं रहेंगे, जब कि अगर उनकी मौत अभी हो जाती है तो हमारी जिंदगी बच जाएगी। हमारे आश्रम की जिंदगी बच जाएगी। अब कहिए आप क्या कहते हैं...?”
    
    आचार्य ज्ञरक के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था। वह खामोश होकर सर झुका कर रह गए। मगर हिना के पास इसका जवाब था। हिना आगे जाते हुए बोली “अगर हम अपने मकसद में असफल हो जाते हैं, और शैतान अगर इस दुनिया पर हमला कर देता है तब भविष्यवाणी वाला लड़का सब सही करेगा। यह मत भुलिए उसके 21 साल के हो जाने के बाद उसके हाथों से शैतान की मौत होगी। आप कम से कम इस चीज पर तो विश्वास रख सकते हैं ना।”
    
    “भविष्यवाणी वाला लड़का!!” आचार्य वर्धन यह सुनकर हंसने लगे। “तुम उस भविष्यवाणी वाले लड़के की बात कर रहे हो जिसके बारे में कोई जानता भी नहीं। किसी को पता भी नहीं वह कहां है और किस हालत में है। कोई यह भी नहीं जानता वह जिंदा है भी या नहीं। जब किसी चीज के बारे में पता ही नहीं तो हम उसे लेकर कैसे यकीन करें। कैसे मान लें वह सब सही करेगा।”
    
    “ठीक वैसे ही जैसे आप यह मान रहे हैं कभी ना कभी इस दुनिया पर शैतान का कब्जा होगा।” इस बार हीना ने अपनी तरफ से अकड़ दिखाई।
    
    अचार्य वर्धन को यह सुनकर गुस्सा आ गया। उन्होंने अपनी तरफ से जादुई तरंग छोड़ी जिससे हिना उछलते हुए दूर जा गिरी “चुप रहो नादान लड़की।” अचार्य वर्धन गुस्से में बोले।
    
    उन्होंने सामने से हमला कर दिया था तो इधर आचार्य ज्ञरक ने भी अपने छड़ से हमला कर दिया। उनकी छड़ से बिजली वाली तरंग निकलकर आचार्य वर्धन की तरफ गई । उसका सामना करने के लिए आचार्य वर्धन ने अपनी छड़ आगे कर दी। उन की छड़ से भी बिजली की तरंग निकली मगर वह काले रंग की थी। दोनों ही तरंगे आपस में टकरा गई।
    
    आचार्य वर्धन बोले “मुझे पूरा यकीन है कि मैं बिल्कुल सही हूं। इसलिए मैं अपने इस काम को पूरा करके ही रहूंगा। अगर आप सब मुझे रोकने की कोशिश करेंगे तो मजबूरन मुझे आप को अपने रास्ते से हटाना होगा। अगर मैं अपने लोगों को बचाने के लिए इतने लोगों की बलि दे रहा हूं, तो कुछ लोगों की ओर सही।” इतना कहकर उन्होंने हमला तेज कर दिया। उनकी बिजली की तरंग आचार्य ज्ञरक की तरंग पर हावी हो गई और उन्हें पीछे गिरा दिया।
    
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1 Comments

Lotus🙂

29-Jan-2022 12:35 AM

Very nicely written sir, impressed,

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